जब लव कुश ने प्रभु को अपना परिचय बतलाया```रिश्ता उनका उनसे क्या है उनको यह समझाया````
तब प्रभु बोले सिया को राज भवन में आना होगा````हैं वो पतिव्रता पवित्र प्रमाण इसका बतलाना होगा```
बीता वह दिन वह रात बीती`अब नयी सुबह है आई```वाल्मीकि संग``संग लव कुश को लें सिया राज भवन में आईं```
दो खंड हुए प्रजा के``` एक बोला सिया का शपथ ग्रहण करना अनीति अनाचार```तो दूजा बोला नहीं यही है नीति और धर्माचार``
सिया बोली जय जय जय हे रघुराई``अब मैं आपकें समक्ष करतीं हूँ यही दुहाई```
मैं दशो दिशाओं यक्ष गन्धर्व किन्नर देव दनुज मनुज एवं पञ्च महाभूत वायु अग्नि जल पृथ्वी नभ सभी को साक्षी मन कर यह कहती हूँ```````
यदि मैंने मनसा वाचा कर्मणा से अपने स्वामी को ही माना है``` हित अहित परहित सदैव उन्ही में जाना हैं```
तो हे धरती माता तुम आओ``` संग में मुझे अपने ले कर जाओ```
अब मुझे नहीं हैं तनिक भी जीने की आस``` गुरुजन परिजन पुरजन राजन मुझे रोकने का न करना कोई भी प्रयास````अब मुझे नहीं हैं तनिक भी जीने की आस```
यही होगा प्रमाण मेरा सत्य कर इसे दिखलाओ``` हे धरती माता अब तो तुम आओ``````
बिजली चमकी फट गयी धरती``धरती में से वासुकी नाग वाले सिंघासन पर बैठी धरती माता आई```सभी को लगा मानो सिय हो चली अब पराई```
सिय को धीर धरा``धरा बोली``सिय तेरे लायक नहीं ये धरा````व्यर्थ ही यहाँ कें कारण तूने यह शील सौम्य रूप धरा````
सिय बैठ गयीं धरती माता के निकट उनके सिंघासन पर जा कर ```सिया को ले चली माता धरती```धरती कें अन्दर`````
जब गुरुजन परिजन पुरजन प्रियजन प्रजाजन सभी हुए असहाय ```तब क्रोध कर राजा रामचन्द्र आगें है आये``
धरती से कहे राम हे धरती तुम मुझे मेरी सीता लौटाओ```अन्यथा मेरे क्रोध का भागीदार बन अपना सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट करवाओ```
वन पर्वत गिरि नदी से रची यह सृष्टी``सृष्टी पल में यह मिटाऊंगा```अंत-हीन जो है यह सृष्टी``सृष्टी का उस, अंत कर मैं दिखलाऊंगा````
यह कह रघुवर ने प्रत्यंचा पर तब बाण चढ़ाया```समय सृष्टी के अंत का तब ```जब आया```
तब ब्रह्म देव प्रगटे राज महल कें अन्दर ``` वे बोले जय जय हे कृपा के सागर`` जय जय जय हे रघुवर```
आप तो है मर्यादा पुरषोत्तम धीर वीर और गंभीर``` तो साधारण मनुष्य के भाति क्रोध कर ना होये इतने अधीर```
नाग लोक की राह लें सिया अपने परम धाम साकेत धाम को जाएँगी ``` आपके महापरायण वैकुण्ठ गमन क पश्चात पुनः वो आपको पाएंगी``
ब्रह्मदेव अंतर्धयान भये यह कह कर `````क्रोध अपना अब शांत कर रहे हैं रघुवर```
थी इस प्रकार से माता सीता धरती में समाई`````और इस कथा को अनिकेत कुमार ने है ऐसे बतलाई``
जय जय जय हे रघुराई``जय जय जय हे रघुराई```````
कपि एक सूर्य के पास जो आयो ``` देख उसे राहु घबरायो```
बात जा के इंद्र को बतायो```इंद्र ने अपना वज्र चलायो```
वज्र की मार कपि ने हनु पर खायो``` टूटी हनु तो हनुमान कहायो```
कपि था एक सूर्य के पास जो आयो ```बजरंगी से हनुमत नाम है पायो```
टूटी हनु तो हनुमान कहायो```टूटी हनु तो हनुमान कहायो```
~*~ @π!k€t_kum@₹_bhaarat ~*~
राम मंदिर हमें बनाना है```हिंदुत्व अपना हमें बचाना हैं``
पर क्यों सोचें हम अपने देश की````सोचेंगे तो हम अपने धर्म विशेष की```
जिस देश में भुखमरी आज भी छाई है```बेरोज़गारी ने शरण जिस देश में पाई है````
किसान जहाँ का भूखो मरता हैं````फांसी पे लटक आत्महत्या जहाँ करता है```
नारी एक जहाँ पूजी जाती है```फिर भी इज़्ज़त अपना जहाँ बचा नहीं पाती है```
उस देश में राम मंदिर तो हम बनाएंगे```पर राम के आदर्शो को नहीं हम बचाएंगे```
राम मंदिर तो सहजता से बन जायेगा```पर क्या उस मंदिर में रामलला भला रह पायेगा```
राम मंदिर बनने से क्या राम राज्य आ जायेगा``` या राम मंदिर का अस्तित्व-अस्तित्व राम का बचा पायेगा```
खून आंसू से बने उस मंदिर को देख राम भी घबरायेंगें```निज घर त्याग पुनः -पुनः स्वेच्छा से वन को ही जायेंगें```
तो राम मंदिर से पहले, राम को हमें लाना है````मन में अपने राम बसा उसे ही अवध हमें बनाना है````
जन-जन का मन, जब राम का मंदिर बन जायेगा````तभी धरा पर राम राज्य स्थापित हो पायेगा```
श्री राम जी की बस यही पुकार``मंदिर को नहीं राम को बचा लो अबकी बार```
यही सन्देश दे कलम पर विराम लगाए अनिकेत कुमार`````
मत करो राम के आदर्शो का संघार```मत होने दो राम जी की हार```
राम जी को बचा लो अबकी बार````श्री राम जी को बचा लो अबकी बार```
श्री राम जी को बचा लो अबकी बार```
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,
वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी |
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,
हिन्दू मुस्लिम फिर लडेंगे, ले कर अपनी अपनी निशानी,
फिर बहेगा खून बन कर के पानी,
पुनः उठी वो बात पुरानी |
देखो अब किस जाती को पड़ती है, मूह की खानी,
राम अल्लाह कभी ना चाहे, हो उनके नाम पर जीवन हानी,
निर्दोषों का निर्मम खून बहाना, नहीं कहलाती ये कुर्बानी,
जिस ज़मी के नाम पर खून बहे, नहीं है वो जमी, पवित्र सुहानी,
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,
वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी |
जो धरम मानव को भरमाये,
जो धरम हिन्दू मुस्लिम कह, एक मानव से मानव को लडवाए,
जिस धरम के कारण एक मानव , एक मानव का रक्त बहाये,
फिर वो धरम – धरम नहीं, मात्र एक ढकोसला ही कहलाये,
ऐसे नीच धरम को देख , राम अल्लाह भी होते है, शर्म से पानी पानी,
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,
वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी ,
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी|
अगर यही कलयुग का काला अँधेरा है,
तो कहाँ छिपा है, वो सूरज, आज जिसके इंतजार में रोता सवेरा है,
राम अल्लाह के अस्तित्व को, आज चहुदिश से विनाश ने घेरा है,
तो जो धरम आग लगायें , वो नीच धरम न तेरा है , न मेरा है,
असंख्य कुरीतियों का, यह धरम एक बसेरा है,
इस धरम का पालन, राम अल्लाह के संग इमानदारी नहीं, यह तो है बेईमानी,
पुनः उठी वो बात पुरानी, पुनः उठी वो बात पुरानी,
वही राम जन्म भूमि- बाबरी मस्जिद की कहानी ,
~*~ अनिकेत कुमार {भारत} ~*~
अतयंत मनोहारी, मंगलकारी दिन है आया```चार बहन संग चार भाइयो ने जब ब्याह रचाया```
जनकपुरी में होने लगी चारो बहनो की विदाई```सिय संग उर्मिला मांडवी सुतकीर्ति अयोध्या आई```
फिर दिन आया एक सुहाना```तय हुआ राम को अवध नरेश है बनाना```
हर घर में दे यही बात सुनाई```राम बनेंगे हमारे रघुराई```
पर मायापति ने निज भक्तो पर अपने-अपनी ऐसी माया चलाई```मंथरा ने कैकई की मति फिराई```
उसको उसके दो वचनो की याद दिलाई```राम न बन पाए रघुराई````
अतयंत दुखदाई पीड़ाकारी दिन है आया```लखन सिय संग वन को जा रहे रघुराया````
अवधपुरी में हो रही दुःखद विदाई```विदा करने सगरी प्रजा घरो के बहार आई ````
विधना तेरा ये लेख किसी विधि , किसी के मन को ना भाया```स्वयं मायापति जा रहे है वन, सब पर चढ़ा के अपनी माया````
इस प्रसंग को अनिकेत कुमार ने है ऐसे बतलाया ```` जय जय जय हे रघुराया```
जय जय जय हे रघुराया```