हां मैं चुप हूं, ऐसा नहीं कुछ कहने को है नहीं, पर इस भीड़ में कोई अपना दिखता नहीं, सो मैं चुप हूं।
दिल में मेरे भी उठती आवाज़ है, साझा करने को लोगो से कई राज़ है, पर मैं चुप हूं।
मन में लोगो सें कहनें को कई अरमान हैं, दिल में उठता बातों का एक तूफान है, पर मैं चुप हूं।
ना शब्दों का अभाव है, ना चुप रहना मेरा स्वभाव है पर मैं चुप हूं।
लगता है कभी लोगो से दिल की अपने मैं कहूं, फिर लगता है यूं हीं ख़ामोश चुप मैं रहूं , सो मैं चुप हूं।
साथी कोई आज साथ नहीं, किसी दोस्त का हाथ, आज मेरे हाथ नहीं, सो मैं चुप हूं।
पर दिन फ़िर वो आएंगे, जब फिर हम मुस्कुराएंगे,
आज अंधेरा घना है तो क्या, आज सूरज छिपा है तो क्या,
बादल एक दिन फिर छट जाएंगे, फिर हम मुस्कुराएंगे।
फिर से दोस्तो का साथ अपना होगा , दोस्तो की टोली का सपना अपना होगा,
तब दिल की अपने मैं कहूंगा, तब यूं ना मौन मैं रहूंगा,
हर बात फिर ज़ुबां पर आएगी, अपनी हर सोच शब्दों में फिर ढल जाएगी,
दोस्तों में तब कहकहे मैं फिर लगाऊंगा, अपनी हर सोच को बिन सोचे सबसे बताऊंगा,
पर तब तक के लिए मैं चुप हूं, हां मैं चुप हूं।।
~*~ अनिकेत कुमार {भारत} ~*~
~*~ 15/04/2019 ~*~