सभ्यता का मुखौटा
सभ्यता का मुखौटा

सभ्यता का मुखौटा होता हर किसी को प्यारा, इसे लगाये जो जो होता वो वो हर किसी की आँख का तारा

बातें होनी चाहिए, मन मोहक प्यारी और लच्छेदार , सच्ची बातें , सच्ची भावना का मोल नहीं आज की सभ्य दुनिया में है वो सारी बेकार

दिल सें करो कुछ ही की इज्ज़त पर जुबां से हर किसी की इज्ज़त कर कें दिखलाओ, लोगों की बातों में बात मिला, लोगो को उनके दिल की सुना सबके प्यारे चहीते बन जाओ

पीठ पीछें बोलो चाहे बुरा जितना , मुह पर तुम करो बड़ाई ,हर रीत से रीत यही भली, रीत यही आज सभ्य कहलाई ,

कोई देख ना पाएं, समझ ना पाए, सभ्यता कें गोरे मुखौटे कें पीछे छिपा चेहरा काला,हर कोई है सभ्य यहाँ, हर कोई हैं सभ्यता के मुखौटे वाला

अब और भला इज्ज़तदारों की महफ़िल में हम किस इज्ज़तदार पर हम क्या क्या इलज़ाम लगाएं’  दुनिया की इसी सभ्यता और इमानदारी को ही तो देख आज ये अनिकेत कुमार खुद को बेईमान और असभ्य बाताये

खुद को बेईमान और असभ्य बनाये

 

year -2011

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1 . बहाने बहुत थें 2 . आज भी ये दिल``` 3 . ख़ामोशी महज़ ख़ामोशी नहीं , 4 . काश कोई एक लम्हा होता 5 . जी रहां हूं अकेले, 6 . हम भी अच्छे हो गए 7 . एक अतीत 8 . कभी जो तुम पास हमारें थें` 9 . ख़ामोश नहीं रहतीं आँखें``आंखें भी बहुत कुछ कह जातीं हैं``` 10 . बन परवाना शमा की ओर जलने ना जाऊंगा```` 11 . यूँ ना देखो दर्पण को``` 12 . हम तो करेंगें इन्तज़ार 13 . कहने को तो बहुत कुछ है 14 . जी रहा था तब तक 15 . कुछ सवाल 16 . ख़ुश था तब तक. 17 . फिर चला हुं वीराने में 18 . गुमनामी ही हमारी पहचान हैं 19 . मौन पर मैं रहता हूं.. 20 . ना था छोटा तब तक 21 . बहुत ही गहरा एक राज़ हूं मैं... 22 . वो अनिकेत कहां हम है। 23 . बहुत से मिले हुनर, 24 . ख्वाबों में ही जी लेता हूं ... 25 . मयस्सर जो होती 26 . पर मैं ना बदला 27 . जागती आंखों से देखें जो सपने, 28 . गुमनामी 29 . दूर उन यादो से हूँ मगर 30 . एक बार मोहब्बत कर बैठें थें 31 . फिर एक शाम ढली`````` फिर तेरी याद आयी 32 . कभी जो तुमसे नज़रे मिली 33 . दिल में उठता है दर्द``` आतीं हैं जब यादें बेदर्द``` 34 . हमने तुमको चाहा कितना ये तुम क्या जान पाओगें 35 . जब साथ चले तो लगा साथ है निभाना 36 . जिन्होंने दिया हैं ज़ख़्म ला कर के वही दें मरहम``` 37 . ज़िन्दगी किस मोड़ से गुजरी 38 . मान के दुनिया तूझे 39 . कोई तो आस पास रहता है 40 . अनगिनत इच्छाएं मन की 41 . उठो चलो हमें चलना है 42 . इतनी जल्दी भी क्या है 43 . फिर चला हूं , अतीत में मैं, 44 . इन राहों से तुम भी हो अनजान 45 . कभी कुछ था देखा तुममें 46 . भविष्य बनाने की ख्वाहिश थी 47 . दिन वो फिर आएंगे 48 . मुट्ठी में बंद किया था वक़्त को, 49 . वक़्त और मोड़ All posts